देश में मेट्रो दौड़ी, चाँद पर तिरंगा फहराया… पर 7.5 करोड़ लोग अब भी रोटी को तरसते

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आजादी के 78 वर्ष बाद भी भारत में करोड़ों लोग गहरी गरीबी की मार झेल रहे हैं। सरकारी और अंतरराष्ट्रीय संस्थाओं के आँकड़े बताते हैं कि देश की लगभग 7.5 करोड़ से अधिक आबादी प्रतिदिन 62 रुपये (यानी 1 अमेरिकी डॉलर) भी नहीं कमा पाती।

सोचने वाली बात है कि आज के समय में 62 रुपये में न तो एक लीटर दूध आता है और न ही मोबाइल का साधारण रिचार्ज हो पाता है। ऐसे में इन करोड़ों लोगों के लिए दो वक्त की रोटी, शिक्षा और स्वास्थ्य जैसी बुनियादी ज़रूरतें पूरी करना बेहद कठिन हो जाता है।

विश्व बैंक और नीति आयोग के बहुआयामी गरीबी सूचकांक (MPI) के मुताबिक भारत ने पिछले वर्षों में गरीबी घटाने में बड़ी प्रगति की है, लेकिन आज भी सात करोड़ से अधिक लोग अत्यधिक गरीबी रेखा के नीचे जीवन जी रहे हैं।

यह संख्या अपने आप में चौंकाने वाली है। तुलना की जाए तो ब्रिटेन जैसे विकसित देश की कुल आबादी भी सात करोड़ से कम है, यानी आज भारत में जितने लोग रोज़ 62 रुपये से भी कम में जीने को मजबूर हैं, उतनी आबादी पूरे ब्रिटेन की भी नहीं है।

गरीबी की यह तस्वीर बताती है कि विकास और तेज़ आर्थिक वृद्धि के बावजूद देश के एक बड़े हिस्से तक बुनियादी सुविधाएँ और रोज़गार के अवसर पहुँचाने में अब भी बहुत काम किया जाना बाकी है।

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