“बुलेट पर साइकिल, कंधों पर समाजवाद – बलिया में छाया अखिलेश का सुपरफैन”

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बलिया जिले के एनसीसी तिराहे पर रविवार की शाम का नज़ारा कुछ अलग ही था। भीड़ के बीच अचानक कैमरे चमक उठे, मोबाइल रिकॉर्डिंग शुरू हो गई और हर किसी की नजरें टिक गईं.
एक अनोखे दृश्य पर—बुलेट पर साइकिल और उस पर सवार एक जोशीला समाजवादी, जिसने अपना दिल पूरी तरह सपा मुखिया अखिलेश यादव को समर्पित कर दिया है।
यह कोई और नहीं बल्कि मऊ जिले के रहने वाले मुसाफिर यादव हैं। उनका कहना है कि वे घर पर कम और सपा की “जनता सरकार” का संदेश लोगों तक पहुँचाने के लिए ज़्यादा समय सड़क पर गुज़ारते हैं। जुनून ऐसा कि बड़े-बड़े नेताओं की चमचमाती गाड़ियाँ भी उनके स्टाइल के आगे फीकी लग जाती हैं।
“समाजवादी सिंघम” की पहचान
बुलेट पर साइकिल टांगकर प्रचार करने वाले मुसाफिर यादव को लोग अब “समाजवादी सिंघम” कहने लगे हैं। उनका मिशन साफ है—”गांव-गांव, गली-गली जाकर अखिलेश यादव की नीतियों को पहुंचाना”।
क्यों नहीं थकते मुसाफिर?
मुसाफिर मुस्कराते हुए कहते हैं—
“जब दिल ही लग गया अखिलेश यादव से, तो थकान कैसी?”
500 किलोमीटर हो या 700 किलोमीटर, यह “समाजवादी सिंघम” अपनी बुलेट से ही यात्रा पूरी करता है। खास बात यह है कि अखिलेश यादव भी इस अनोखे समर्थक को पहचानते हैं और उनकी दीवानगी का सम्मान करते हैं।
प्रचार की अनोखी तकनीक
जहां आम कार्यकर्ता पोस्टर-बैनर या माइक का सहारा लेते हैं, वहीं मुसाफिर की “बुलेट-साइकिल” खुद ही आकर्षण का केंद्र बन जाती है। जिस भी चौराहे पर वे रुकते हैं, वहां लोग सेल्फी लेने और तस्वीर खींचने के लिए उमड़ पड़ते हैं। उनकी बुलेट अब एक चलता-फिरता प्रचार वाहन बन चुकी है।
संगीत से मिलता जोश
थकान दूर करने के लिए मुसाफिर यादव का राज भी दिलचस्प है। वे मोबाइल पर समाजवादी गीत बजाते हैं—
“अखिलेश आएंगे, फिर से विकास लाएंगे!”
बस, गाने की धुन और अखिलेश का नाम सुनते ही उनमें बिजली सी दौड़ जाती है।
क्यों छोड़ते हैं चारपहिया गाड़ियाँ?
जब उनसे पूछा गया कि प्रचार के लिए फोर व्हीलर क्यों नहीं लेते, तो उनका जवाब और भी दमदार था—
“कार में आदमी बंद हो जाता है और जनता से संपर्क टूट जाता है। बुलेट से हर गली, हर नुक्कड़ और हर दिल तक पहुंचा जा सकता है।”
बलिया का आकर्षण बन चुके मुसाफिर
बलिया में जब लोग उनकी झलक देखते हैं तो बरबस कह उठते हैं—
“भाई साहब, स्टाइल तो गजब यूनिक है!”
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